शवास भर की दूरी

तेरे पास लौटने की वजह नहीं कोई
यहाँ ठहरने का बहाना भी नहीं
शवास भर का अंतर है दोनों के बीच
ये न हो तो मैं भी नहीं तू भी नही
वजहों को लक्ष्य कह कर
कब तक दौड़ते रहें
लक्ष्य स्वयं ही दौड़ा फिरे
तो पूर्ण कैसे होए
ठहरे जल में ही दिखे
बिंब पूर्ण आकार
राह जब समाप्त हो
तब दिखे घर का द्वार
घर, द्वार, राह, वजह
जब नहीं उत्साहें
स्वयं ही स्वयं का लक्ष्य हो
तब अदृश्य होती राहें
खुद से खुद तक सफर करने को
शवास की राह बनाए
यह राह भी न रहे
तो पथिक कौन और लक्ष्य कौन कहाए।।

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